पटना , 27 दिसम्बर। उर्दू भाषा के विश्व प्रसिद्ध कवि मिर्जा गालिब की 226 वी जन्मदिवस पर एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन सत्याग्रह भवन बेतिया में किया गया ।इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय पीस एंबेस्डर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता ,डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड ,डॉ शाहनवाज अली, डॉ अमित कुमार लोहिया, वरिष्ठ पत्रकार सह संस्थापक अध्यक्ष मदर ताहिरा चैरिटेबल ट्रस्ट डॉ अमानुल हक , सामाजिक कार्यकर्ता नवीदूं चतुर्वेदी, पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन ने संयुक्त रूप से श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि आज ही के दिन आज से 226 वर्ष पूर्व 27 दिसंबर 1797 ई0 को उर्दू भाषा के विश्व प्रसिद्ध कवि मिर्जा गालिब का जन्म भारत के प्रसिद्ध शहर आगरा में हुआ था।
मिर्ज़ा ग़ालिब ने 11 साल की उम्र में ईरान से दिल्ली आये एक नव-मुस्लिम-वर्तित के साथ रहकर फारसी और उर्दू सिखाना शुरू कर दी थी. मिर्ज़ा गालिब द्वारा ज्यादातर गजल फारसी और उर्दू में लिखी गयी हैं. जो कि पारम्परिक भक्ति और सौन्दर्य रस से भरपूर हैं.
बहादुर शाह जफ़र भी उर्दू शेर शायरी के बहुत बड़े प्रशंसक होने के साथ-साथ कवि थे. इसीकारण मिर्ज़ा की ग़ज़ल, शेर-शायरियाँ पढने में रूचि लिया करते थे. धीरे धीरे मिर्ज़ा ग़ालिब दरबार के खास दरबारियों में शामिल हो गए. उनकी शायरियों में जीवनशास्त्र के रहस्यवाद को भी दर्शाया गया हैं. 1850 में शहंशाह बहादुरशाह ज़फ़र ने मिर्ज़ा गालिब को दबीर-उल-मुल्क और नज़्म-उद-दौला के खिताब से नवाज़ा. बाद में उन्हे मिर्ज़ा नोशा का खिताब भी मिला.
इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि 1857 की क्रांति के बाद मिर्ज़ा ग़ालिब की ज़िन्दगी पूरी तरह बदल गयी. स्वतंत्रता संग्राम में मुग़ल सेना को ब्रिटिश राज से हार मिली जिसके बाद बहादुर शाह को अंग्रेजों ने रंगून भेज दिया. जिससे मुग़ल दरबार नष्ट हो गया. मिर्ज़ा को भी आय मिलना बंद हो गयी. इस दौरान मिर्ज़ा ग़ालिब के पास खाने के भी पैसे नहीं बचे. वह छोटे-छोटे समारोह में जाकर अपनी शायरियों से लोगों को प्रभावित करने लग गए. मिर्ज़ा में अपने जीवन की बेहतरीन शायरियाँ इसी समय में लिखी इसी कारण मिर्ज़ा को आम लोगों का शायर भी कहा जाता है।
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