बिहार :- दलित शोषण मुक्ति मंच डीएसएमएम का तृतीय राष्ट्रीय सम्मेलन बेगूसराय में शुरू।

 


   बेगुसराय (बिहार), 03 दिसंबर।  दलित शोषण मुक्ति मंच का तृतीय राष्ट्रीय सम्मेलन आज बेगूसराय के राहुल सांकृत्यायन नगर के सारंगधर पासवान मंच पर दिनकर भवन बेगूसराय में प्रारंभ हुआ । इसके पूर्व जे के इन्टर विद्यालय , बेगूसराय में खुला अधिवेशन की अध्यक्षता पूर्व विधायक  राजेंद्र प्रसाद सिंह ने की । खुला अधिवेशन को संबोधित करते हुए भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के राष्ट्रीय महासचिव का.  सीताराम येचुरी ने कहा कि आज भाजपा नीत केंद्र की मोदी सरकार में दलितों की स्थिति दयनीय हो चुकी है । आज जातीय भेदभाव , सामाजिक उत्पीड़न , जाति , धर्म , नस्लों के आधार पर सबको देखा जा रहा है । दलित महिलाओं पर बलात्कार में बढ़ोतरी होती जा रही है और मोदी सरकार उत्पीड़न करने वाले तथा बलात्कारियों की संरक्षक के रूप में सामने आई है । ऐसी स्थिति में हमारे सामने अस्पृश्यता देश की सामाजिक , सांस्कृतिक एवं आर्थिक स्तर पर गंभीर चुनौती बनी हुई है। 

      देश में कुल आबादी का 16.26 प्रतिशत हिस्सा दलितों की है । आबादी के इतने बड़े हिस्से को अलग-थलग करके विकास के किसी भी मापदंड के तहत देश के विकसित होने की कल्पना तक नहीं की जा सकती है । देश में न्याय , समानता  और भाईचारा के बिना दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश होने का दावा नहीं किया जा सकता है । 

       श्रम शक्ति से देश के उत्पादन एवं सेवा कार्य में सबसे अधिक भागीदारी दलित, आदिवासी और पिछड़ी जाति के लोग शामिल है । ऐसे कर्मवीरों की संख्या कुल आबादी का 85% से अधिक है । मेहनतकशों कि आज जवाबदेही है कि एक  मजबूत जाति विरोधी , अस्पृश्यता विरोधी , विचारधारात्मक प्रचार प्रसार और प्रतिकार के माध्यम से दलित समुदाय को इस कटुतापुर्ण सामाजिक , सांस्कृतिक तथा आर्थिक उत्पीड़न कारी व्यवस्था से मुक्ति दिलाने का मजबूत और एकजुट संघर्ष चलाना है। तभी हम नफरत की राजनीति करने वाली , सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाली , दलित उत्पीड़न पर मौन रहने वाली इस जनविरोधी मोदी सरकार को देश की गद्दी से उतार सकते हैं ।

         दलित शोषण मुक्ति मंच के उपाध्यक्ष तथा माकपा पोलितब्यूरो सदस्य का. सुभाषिणी अली ने कहा कि जातीय विभेद के आधार पर स्त्रियों को दासता से मुक्त कर के ही जनवादी तत्वों द्वारा उत्पादन के साधनों का सामाजीकरण किया जा  सकता है ।

          जनगणना के अनुसार देश की कुल आबादी 16. 60 प्रतिशत है ।  यानी 20 करोड़ से अधिक दलित हैं ।जिनमें 87.4 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र तथा 12. 6 प्रतिशत शहरी क्षेत्र में रहते हैं । ग्रामीण दलितों के पास खेत से जुड़े मजदूरी के अलावे जीविका का कोई दूसरा साधन नहीं है । न तो जमीन है ना कोई पूंजी है । अस्पृश्यता के कारण चाय , पकौड़ा का दुकान या सब्जी बेचने जैसा रोजगार भी नहीं कर सकता है । मजदूरी के रूप में गेहूं या आलू मिलता । उसी से वह अपने दैनिक जरूरतों के सामान खरिदता है।

         आकस्मिक कार्यों के लिए जमीन के मालिकों पर वह पूरी तरह निर्भर है । जो उसे मजबूर बना देता है।  वे जातीय और लैंगिक हिंसा के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाते । दैनिक जीवन में मानसिक प्रताड़ना और यौन शोषण के खिलाफ पुलिस और कचहरी तक जाने से भी डरते हैं । अगर वह पुलिस तक जाते हैं तो वहां भी उन्हें न्याय नहीं मिलता। ईट भट्ठा मैं काम करने वाले दलित परिवारों के शोषण उत्पीड़न से पूरा समाज अवगत है । इस समाज के लिए जनतांत्रिक अधिकार की इच्छा अनुसार वोट देना भी मुश्किल हो जाता है । व्यवहारिक रूप में ऐसे समय में भू मालिक के कोप का दर बना रहता है । जो उन्हें मजदूरी करने से भी वंचित कर देता है।

           खुला अधिवेशन को दलित शोषण मुक्ति मंच के अध्यक्ष तथा केरल के मंत्री के. राधाकृष्णन , महासचिव तथा पूर्व सांसद डा. रामचंद्र डोम , माकपा राज्य सचिव ललन चौधरी , अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनियन के संयुक्त सचिव विक्रम सिंह , विधान सभा में माकपा विधायक दल के नेता अजय कुमार , दलित शोषण मुक्ति मंच के बिहार के सचिव श्याम भारती आदि ने संबोधित किया। मंच पर माकपा राज्य सचिवमंडल सदस्य तथा केंद्रीय कमिटी सदस्य अवधेश कुमार , बिनोद कुमार , सर्वोदय शर्मा , प्रभुराज नारायण राव , अहमद अली , रामपरी , श्याम भारती , भोला दिवाकर , संजय कुमार , देवेन्द्र चौरसिया मौजूद थे ।

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