आज ही के दिन 9 नवंबर 1932 को ऐतिहासिक मीना बाजार में लिया था भगत सिंह की मौत का बदला, राष्ट्रीय धरोहर में शामिल हो ऐतिहासिक मीना बाजार।

 



बेतिया, 09 नवंबर। आज सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन एवं मीना बाजार मार्केट कमिटी के तत्वधान में एक सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन ऐतिहासिक बेतिया का मीना बाजार के उसी ऐतिहासिक स्थान पर किया गया जहां पर चंद्र शेखर आजाद एवं भगत सिंह बैठक करते थे  , इस अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय पीस एंबेसडर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता एवं मीना बाजार मार्केट कमेटी के सचिव शशि भूषण गुप्ता, प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड के चांसलर डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल, मीना बाजार मार्केट कमेटी के रेयाज अहमद ने महान स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद बैकुंठ शुक्ल एवं ऐतिहासिक मीना बाजार के व्यवसायिक स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में ऐतिहासिक मीना बाजार का योगदान अतुल्य रहा है, 1906 में बेतिया राज प्रबंधक द्वारा बेतिया राज की अंतिम महाराज हरेंद्र किशोर सिंह एवं बेतिया राज की अंतिम महारानी जानकी कुंवर के सपनों को साकार करते हुए बेतिया राज प्रबंधक ने शहर में नागरिक सुविधाएं बहाल करते हुए ऐतिहासिक मीना बाजार, ऐतिहासिक राज हाई स्कूल जैसे अनेक महत्वपूर्ण इमारतों की  बुनियाद रखी, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह1917 में  ऐतिहासिक मीना बाजार के व्यापारियों एवं स्वतंत्रता सेनानियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ,16 जुलाई 1917 को ऐतिहासिक हजारीमल धर्मशाला एवं 17 जुलाई 1917 को ऐतिहासिक राज हाई स्कूल के प्रांगण में चंपारण जांच कमेटी के समक्ष 10,000 से ज्यादा किसानों एवं मजदूरों ने  अंग्रेजों के अत्याचार के विरुद्ध जो बयान दर्ज कराया था उसमें ऐतिहासिक मीना बाजार के व्यवसायियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ,साथ ही आजाद हिंद फौज के संस्थापक नेताजी सुभाष चंद्र बोस ,चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह ,राजगुरु सुखदेव का भी गहरा लगाव  बेतिया के ऐतिहासिक मीना बाजार से रहा ,राष्ट्रीय आंदोलन को धारदार बनाने में मीना बाजार के व्यवसायियों ने सामाजिक एवं आर्थिक तौर पर स्वतंत्रता सेनानियों की मदद की थी, विभिन्न अवसरों पर भगत सिंह ने अपने साथियों के संग मीना बाजार के व्यवसायियों से संपर्क साधा था , देश की स्वाधीनता के लिए एक से बढ़कर क्रांतिकारी हुए हैं जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने आप को कुर्बान कर दिया. ऐसे ही एक क्रांतिकारी बैकुंठ शुक्ल हैं जिन्हें  अंग्रेज हुकूमत ने फांसी की सजा दी थी. उस वक़्त उनकी उम्र महज 28वर्ष थी. गौरतलब है कि शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को जिस फणीन्द्र नाथ घोष की गवाही पर 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई थी.  फणींद्र नाथ घोष वास्तव में क्रांतिकारी थे लेकिन अंग्रेजी हुकूमत की यातना एवं जुल्म से टूट गए , ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें सरकारी गवाह बनाया था,  फणींद्र नाथ घोष के कत्ल के जुर्म में बैकुंठ शुक्ल को गया सेंट्रल जेल में 14 मई 1934 को फांसी दी गई थी.

1931 में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर षडयंत्र कांड में फांसी की सजा के एलान से पूरे भारत में गुस्से की लहर फ़ैल गयी. फणीन्द्र नाथ घोष, जो खुद रेवोल्यूशनरी पार्टी का सदस्य थे , अंग्रेजी हुकूमत के दबाव  यातना  एवं अत्याचार से तंग आकर  वादामाफ़ गवाह बन गया और   फणींद्र नाथ घोष की गवाही पर तीनों वीर क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी. इसी घोष को विश्वासघात की सजा देने का बीड़ा बैकुंठ शुक्ल ने उठाया और 9 नवंबर 1932 को घोष को  ऐतिहासिक मीना बाजार के व्यवसायियों के सहयोग से मारकर इसे पूरा किया. उन्होंने उस फणीन्द्र नाथ घोष को दिनदहाड़े बेतिया के मीना बाजार में कुल्हाड़ी से काट डाला जिसकी गवाही के आधार पर भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर लटका दिया गया था. इसी घोष की हत्या के आरोप में उन्हें अंग्रेज सरकार की तरफ से फांसी की सजा मिली. इस अवसर पर डॉ एजाज अहमद, डाo सुरेश कुमार अग्रवाल ,डॉ शाहनवाज अली ,अमित कुमार लोहिया ,अल बयान के संपादक डॉ सलाम एवं पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन ने सरकार से मांग करते हुए कहा कि ऐतिहासिक मीना बाजार को राष्ट्रीय धरोहर की सूची में शामिल करते हुए ऐतिहासिक मीना बाजार को विकसित किया जाए । 

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